तबस्सुम अश्क
मुहब्बत में मुझे इतना बहुत है
तेरा ख़्वाबो में ही मिलना बहुत है
तुझे मंज़िल मिले मेरी दुअ़ा से
मेरे हक़ में तो ये रस्ता बहुत है
न मुझसे दूरियां इतनी बढ़ाओ
ये दिल पहले से ही तन्हा बहुत है
तू मुझको देख ले तुझको मै देखूं
हमारा बस यही रिश्ता बहुत है
समझता है बड़ा ख़ुद को जो यारों
हक़ीक़त में वही छोटा बहुत है
ज़ियादा कुछ नहीं है मेरी ख़्वाहिश
तू जितना प्यार दे उतना बहुत है
किसी के इश्क़ में टूटा हुआ है
वो हर इक बात पे हंसता बहुत है
अभी से उंगलियां थकने लगी है
मुहब्बत पर अभी लिखना बहुत है
न समझो तो ग़ज़ल ज़ाया है पूरी
अगर समझो तो इक मिस्रा बहुत है
